हर रोज ऑफिस आते जाते
कुछ इनविजिबल लोगों से
सामना होता है।
चमचमाते हुई इमारतों पे
रस्सियों से लटकते
कुछ बैग चेक करते
या फिर होउस्कीपिंग ही।
कभी कभी आते जाते रास्तों में
ट्रैफिक में फंसा बछडा भी आ जाता है
गाड़ी के सामने।
कभी कभी दिख जाते हैं
कुछ गंवार लोग भी
बेतरतीब से
लंच टाइम में किसी नजदीकी
अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग से निकलते
या हाइवे को दौड़ कर पार करते।
या कि फिर बालकोनी में बैठे कबूतर ही।
---
डर लगता है
गलती से भी कभी गर
आँखों में झाँक लिया उनके
या कभी उन इनविजिबल लोगों से
प्रकाश परावर्तित होने लगा तो?
डर लगता है
मेरी सभ्यता नंगी ना हो जाये उस दिन।
***
युगदीप शर्मा
( दि० २ सितम्बर, रात्रि ९.५३ बजे स्लोवाकिया में)
कुछ इनविजिबल लोगों से
सामना होता है।
चमचमाते हुई इमारतों पे
रस्सियों से लटकते
कुछ बैग चेक करते
या फिर होउस्कीपिंग ही।
कभी कभी आते जाते रास्तों में
ट्रैफिक में फंसा बछडा भी आ जाता है
गाड़ी के सामने।
कभी कभी दिख जाते हैं
कुछ गंवार लोग भी
बेतरतीब से
लंच टाइम में किसी नजदीकी
अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग से निकलते
या हाइवे को दौड़ कर पार करते।
या कि फिर बालकोनी में बैठे कबूतर ही।
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डर लगता है
गलती से भी कभी गर
आँखों में झाँक लिया उनके
या कभी उन इनविजिबल लोगों से
प्रकाश परावर्तित होने लगा तो?
डर लगता है
मेरी सभ्यता नंगी ना हो जाये उस दिन।
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युगदीप शर्मा
( दि० २ सितम्बर, रात्रि ९.५३ बजे स्लोवाकिया में)