Thursday, October 18, 2012

अहिंसक क्रांति की जरूरत !!


      एक समाज या फिर देश के उत्थान के लिए एक सतत संघर्ष की जरूरत होती है. वह संघर्ष कैसा भी हो सकता है, वह हिंसक भी हो सकता है या फिर अहिंसक भी. इस संघर्ष की दिशा बहुत कुछ समाज, देश, काल और परिस्थितियों पर नर्भर करती है. साथ ही संघर्ष हमेशा बलिदान भी मांगता है. और आगे चल कर यह बलिदान ही उस संघर्ष की सततता, उद्देश्य और सम्पूर्णता में सहायक होता है.

       बहुत अच्छा तो यह हो कि हम बिना उस संघर्ष से गुजरे अपने लक्ष्य को पा सकें, परन्तु आज की परस्थितियों को देखते हुए यह एक असंभव सी बात लगती है.

      ऐसा नहीं है कि भारत में संघर्ष नहीं चल रहा है, संघर्ष चल रहा है, सतत भी है, परन्तु वह दिशा-हीन है. संघर्ष के बहुत से छोटे छोटे टापू जैसे बन गए हैं. हर किसी का अपना एक उद्देश्य है, अपना अपना एक तरीका है. जरूरत है तो उनको एक साथ लाने की. और उन सब को साथ लाने के लिए एक उत्प्रेरक कि आवश्यकता है. लोगों का यह प्रश्न कि "should we not be able to think for ourselves and vote out the corrupts" सही है..लेकिन इन अलग अलग टापुओं कि जड़ में भी यही है कि हर कोई (जो भी थोडा बहुत समझदार है ) अपनी अलग डफली लेकर अपना अलग ही राग बजा रहा है.

       भारत कि बहुसंख्यक जनता को अभी भी इन सब बातों से कोई लेना देना नहीं है. वो अभी भी जाति, धर्म और क्षेत्र के संघर्षों में उलझी हुई है. उन लोगों को साथ लाने के लिए भी उसी उत्प्रेरक कि आवश्यकता है, या कहें कि एक ऐसे नेतृत्व कि आवश्यकता है जिसका वो अन्धानुकरण कर सकें.(स्वंत्रता के आन्दोलन में इसी उत्प्रेरक का नाम "महात्मा गाँधी" था). परन्तु  विडम्बना यही है कि लोग तो अनुकरण (अन्धानुकरण) कर रहे हैं पर वह नेतृत्व अनुकरणीय नहीं है.

       यह सही है कि भारत एक गृह-युद्ध को झेलने लायक अवस्था में नहीं है, परन्तु वह अनेकों प्रकार के संघर्ष तो पहले से ही झेल रहा है. चाहे वह आतंकवाद हो, नक्सलवाद हो, या फिर पूर्वोत्तर का जनजातीय संघर्ष, चाहे वह सिख दंगों कि शक्ल में हो या हिन्दू-मुस्लिम दंगों कि शक्ल में, चाहे वह झारखंड मुक्ति संघर्ष हो या तेलंगाना, या फिर उत्तर-प्रदेश का जिलों कि सीमाओं को लेकर संघर्ष.
     
        तब क्यों नहीं इन सभी संघर्षों को एक नया आयाम देते हुए, सबको समग्र रूप में करते हुए, केवल एक उद्देश्य के लिए, केवल एक संघर्ष का रूप दें, जो कि एक नए भारत का निर्माण हो, नए समाज का निर्माण हो. इसके लिए किसी नए संघर्ष को जन्म देने की जरूरत नहीं है. जरूरत है बस एक समर्थ नेतृत्व देने की, और एक सही दिशा देने की.

(यहाँ मैं यह बात जोड़ना चाहूँगा की मैं हिंसा का कतई पक्षधर नहीं हूँ और मेरे आदर्श गाँधी जी और विवेकानंद जी हैं. और भारत को भी उन्ही के बताये मार्ग पर चलते हुए एक व्यापक अहिंसक क्रांति की जरूरत है... और जो लोग गाँधी जी के मार्ग से असहमत हैं उन्हें मैं 'हिन्द-स्वराज्य ' पढने की सलाह दूंगा.)
********************

युगदीप शर्मा- दि०-१८/१०/१२
(बकर-अड्डा के फेसबुक पर पूछे गए प्रश्न के जवाब में:
Do we really need an outside catalyst to 'awaken' us or should we not be able to think for ourselves and vote out the corrupts?
Can India afford a civil war at this point of time?)

No comments:

Post a Comment