Wednesday, April 2, 2014

कुछ बेतुकी बात... !!! (by युगदीप शर्मा)


पिछले बहुत सालों से ..वो कस कर ले रहे थे..
जनता के मजे....
और जनता मस्त थी..चूसने में...
लॉलीपॉप..उनके वादों का...
और हम बैठे बैठे.. हिला रहे थे..अपना
उम्मीदों का झुनझुना..
और खा रहे थे ..पकौड़ियाँ ..
जो की उन्होंने निकाल दीं थीं ..
कच्चे तेल में ही..
हजम तो हमको भी नहीं हुई थी...
कुछ बात...
जो की कर गयी थी..
कब्ज.
पर दोष ले लिया था अपने सर..
पकौड़ों ने..
और उन्होंने थमा दिया था हाथ में...
हमराज चूरन
और अब जनता चाटने में मस्त थी...
उसी चूरन को..
और हम दबा रहे थे... रह रह कर ..
अपने जज्बात
कभी सहला रहे थे अपना ..वही..
कब्जियत वाला पेट..
और नहीं छूटने दे रहे थे..धार..
अपने आंसुओं की..
चूस कर फेंक दिया था उन्होंने ...
जनता को 'आम' समझ कर ..
और जनता निचोड़ने में मस्त थी...
अपनी ही गुठलियाँ ...
और अब हम लेटे-लेटे बजा रहे थे ...
बांसुरी चैन की..
.......
क्यूंकि हम... न 'उन' में से थे...न जनता ही थे..
हम तो थे 'बीच वाले'...
और हाँ...यह तो आप जानते ही होगे...
कि बीच वालों पे...कभी 'उनका' नहीं उठता..
हाथ भी ...
क्यूंकि उनका वही लोग सम्हालते हैं...
हरम..
और पालते हैं फल...उनकी हवस का..
"एक और 'उन' जैसा."..!!!
******************
युगदीप शर्मा (१६ ऑक्टूबर,२०१२)

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