एक दौर था जब ,
हर बंद पलक के साथ,
आँखों में तुम्हारा
चेहरा फिर जाता था
अकेली अँधेरी रातों में
छत से झूलते पंखे पर
तुम्हारी शक्लें ढूँढा करता था
तुम मेरा अस्तित्व बन गयी थीं
तुम्हारे बिना ...
सोच भी नहीं सकता था
जिंदगी गुजार लेने का
पर अब.... इतने बरस बाद..
तुम बस एक
सोच तक सिमट गयी हो
जो कभी कभी
गुजर जाती है दिमाग से
शकल भी धुंधला गयी है अब तो
सिमट गया है तुम्हारा अस्तित्व
कुछ पन्नों में ..
डायरी के वो पन्ने
जो अब ब्लॉग में बदल गए हैं
सोचता हूँ की कभी
अचानक से तुम मिल जाओ
तो क्या पहचान पाउँगा तुम्हें?
शायद नहीं ...!!
और हाँ .. देखो …
जी भी रहा हूँ
अच्छे से
कुछ भी तो missing नहीं है
तुम्हारा होना... न होना
अब कोई फरक नहीं डालता
और यही सच्चाई है!!
***************
युगदीप शर्मा (१३ अप्रैल-२०१४ रात्रि/प्रातः २:३६)
हर बंद पलक के साथ,
आँखों में तुम्हारा
चेहरा फिर जाता था
अकेली अँधेरी रातों में
छत से झूलते पंखे पर
तुम्हारी शक्लें ढूँढा करता था
तुम मेरा अस्तित्व बन गयी थीं
तुम्हारे बिना ...
सोच भी नहीं सकता था
जिंदगी गुजार लेने का
पर अब.... इतने बरस बाद..
तुम बस एक
सोच तक सिमट गयी हो
जो कभी कभी
गुजर जाती है दिमाग से
शकल भी धुंधला गयी है अब तो
सिमट गया है तुम्हारा अस्तित्व
कुछ पन्नों में ..
डायरी के वो पन्ने
जो अब ब्लॉग में बदल गए हैं
अचानक से तुम मिल जाओ
तो क्या पहचान पाउँगा तुम्हें?
शायद नहीं ...!!
और हाँ .. देखो …
जी भी रहा हूँ
अच्छे से
कुछ भी तो missing नहीं है
तुम्हारा होना... न होना
अब कोई फरक नहीं डालता
और यही सच्चाई है!!
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युगदीप शर्मा (१३ अप्रैल-२०१४ रात्रि/प्रातः २:३६)
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