Friday, March 31, 2023

क्रांति

 "क्या चाहिए तुम्हें? 

- क्रांति ?

पर क्यों ? "

"बस चाहिए -

तभी तो हमारा नाम होगा ,

सम्मान होगा ,

कहवा घरों में बैठ कर 

धुंए के छल्लों से  

क्रांति  की पेंटिंग बनाएंगे 


दारु के ठेकों पर 

छलकते  जामों से 

भुखमरी के पैमाने उठाएंगे 


फिर किसी  प्रतिभा को 

क्रांति के सपने दिखा 

झोंक देंगे भट्टी में 


उसी भट्टी की तपिश से 

भुने सिके पॉपकॉर्न खाएंगे। 


और यदि 

उस प्रतिभा का नाम भी 

प्रतिभा ही हुआ 

या लिंग उस आधी आबादी से हुआ 

तब उसे भी झोंक देंगे 

क्रांति की भट्टी में 


निचुड़ जाने तक 

जिसके बदन की तपिश 

बेडरूमों को गरम रखेगी 

जो की क्रांति की पहली शर्त है। "


आओ साथी क्रांति करें !


युगदीप शर्मा - कभी कभी कवि 

३१ मार्च २०२३ प्रातः ११.५५ बजे 

गुरुग्राम 




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