Friday, March 31, 2023

जय जवान, जय किसान!

 जब किसान बूढ़ा हो जाता है 

और उसके बेटे नाती पोते 

उसकी विरासत संभाल लेते हैं, 

तब उन आँखों की चमक देखी क्या कभी?


उनकी  आँखों में झाँको 

जहाँ भर की हरियाली दिखेगी 


छोटी जोत बड़े कुनबों में 

खेती नौकरी साथ चलती है


खेती नौकरी में भाइयों में

छोटे बड़े का भेद 

-यदि है 

तो 'संस्कारों' की गलती है 

'सरकारों' की नहीं। 


मेरे गाँव में, अभी भी 

होश सँभालते ही 

खेत के पेड़ों से लटकते 

लड़के मिलते हैं, 

लाशें नहीं।  

फ़ौज में जाने का जज्बा ही कुछ ऐसा है।  



चिता को आग देता, फौजी का बाप 

दुसरे बेटे को भी जब फ़ौज में 

भेजने का प्रण करता है 

तब उस माई और भौजाई के आंसू 

उसका सम्बल होते हैं , प्रश्न नहीं!


और मेरे दोस्त, यही सम्बल 

आकाश गुंजा देता है 


'जय जवान जय किसान' से 


पर हाँ 

एक बात तो है- 


जब हम चाँद की बातें करें 

तुम रोटी दिखा देना!

कहें हरियाली बहुत है आज तो  

झुलसते मैदां बता देना 

गर कहे कोई 

कि आज फिर बारिश का मौसम है 

उसे तुम भूख और मजदूर की 

अंतड़ियाँ गिना देना !


वो क्या है कि 

कविता में 

जब तक ये बातें न आएँगी  

कोई कैसे इस क्रांति का 

कविताकार कहायेगा। 


कोई कैसे तुम्हें इस क्रांति का 

कविताकार बतायेगा। 


-- एक टाइमपास तथाकथित कवि 

युगदीप शर्मा 

३१ मार्च २०२३ अपराह्न १२.५५ बजे 

गुरुग्राम में 
तस्वीर में लिखी कविता के जवाब में 



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