जब भी मिलूंगा तुमसे
उस ढलती सांझ तक
और उस से परे भी
घनी रात का कलुष
धुल जायेगा
प्रेम की फुहारों से
मेरा और तेरा रंग
घुल जायेगा
करने नयी सृष्टि
और फिर
जहाँ दिन - रात मिलते हैं
धरा-आकाश सिलते हैं
वहाँ
उस दूर क्षितिज के परे से
झाँका कियेँगे हम (अपने भूत में)
देखने वो अद्भुत रंग
जो हमने मिलके बनाया था !
*********
युगदीप शर्मा ( दिनांक ४ अक्टूबर, २०१६, दोपहर १२:५१ बजे)
{उसी दिन दोपहर ११:५७ बजे व्हाट्सएप्प पर भेजी हुई इस कविता के जवाब में:
स्याह काला अँधेरा मेरा
सफ़ेद खिलती चांदनी तुम्हारी...
गरजता घना बादल मेरा
दूधिया सावन की फुहार तुम्हारी....
मंजूर हो अगर बटवारा ये
तो दिन का उजाला लेके
मुझ रात में मिल जाना ..
जो ढलने लगेगी सांझ मिलने पे तेरे..
मैं भी मिलूंगी तुझे उस सांझ के ही परे...
copied }
उस ढलती सांझ तक
और उस से परे भी
घनी रात का कलुष
धुल जायेगा
प्रेम की फुहारों से
मेरा और तेरा रंग
घुल जायेगा
करने नयी सृष्टि
और फिर
जहाँ दिन - रात मिलते हैं
धरा-आकाश सिलते हैं
वहाँ
उस दूर क्षितिज के परे से
झाँका कियेँगे हम (अपने भूत में)
देखने वो अद्भुत रंग
जो हमने मिलके बनाया था !
*********
युगदीप शर्मा ( दिनांक ४ अक्टूबर, २०१६, दोपहर १२:५१ बजे)
{उसी दिन दोपहर ११:५७ बजे व्हाट्सएप्प पर भेजी हुई इस कविता के जवाब में:
स्याह काला अँधेरा मेरा
सफ़ेद खिलती चांदनी तुम्हारी...
गरजता घना बादल मेरा
दूधिया सावन की फुहार तुम्हारी....
मंजूर हो अगर बटवारा ये
तो दिन का उजाला लेके
मुझ रात में मिल जाना ..
जो ढलने लगेगी सांझ मिलने पे तेरे..
मैं भी मिलूंगी तुझे उस सांझ के ही परे...
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