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Wednesday, February 13, 2013

बुद्ध..!!! (By Yugdeep Sharma)


याद है? जब पहले पहल मिली थी तुम,
बगल से एक मुस्कान के साथ गुजर गयी थी.
एक परफ्यूम की गंध के साथ
साँस में बस गयी थी तुम
तब ना कोई हवा चली थी,
ना कोई वोइलिन बजी थी.

देखा था मैंने तुझे, पलट कर जरूर,
जैसा कि मैं हर बंदी को देखता था.
क्या पता था कि वही तुम,
एक दिन आ मिलोगी मुझे,
सपने के जैसे, पलकों पे बैठ जाओगी.

दोबारा कब मिले थे, अब ये तो याद नहीं,

पर हाँ, वो एहसास
अभी भी गुदगुदा जाता है अक्सर,
शायद तुमने कुछ कहा था और मैं,
आँखें फाड़ फाड़ के देख रहा था तेरे चहरे को.


फिर जब तुमने फिर से कहा था तो,
हडबडाकर कुछ तो बोला था मैं भी..
और तुम फिर से मुस्कुरा के,
चली गयी थी...फिर से मिलने को..
वो दिन-
उसे तारीख कहूँ तो तौहीन होगी उन लम्हों की ..
-गुजरा नहीं है आज तक...
अटक गया है कहीं...कलेंडरों से परे.


फिर
ना जाने कब.. सब कुछ बदल गया...
आहिस्ते आहिस्ते...
बिना कुछ बोले भी..
जो आज तक कायम है..

बहुत सी बातें...जो तुमने कभी बोलीं ही नहीं..
बरबस ही सुन लिया करता हूँ मैं.
और तुम भी तो समझ लेती हो हर बात को..
अनकहे ही..

भाषा के मायने बदल गए हैं.. शायद...
पंख फैला लिए हैं उसने...
एहसासों को सुनने लगी है वो अब...
आँखों से बतियाती है...
शब्दों/ ध्वनियों की मोहताज नहीं है वो..


तुम्हारे साथ...हर एक पल...
एक जमीनी एहसास है...
बादलों के पार नहीं पहुँचता कभी भी ..
बहुत मजबूत हैं पांव उसके...या कि शायद जड़ें हैं.
जो कहीं गहरे तक, समेटे हुए हैं मुझे..


तेरे साथ होने पर...हर गम, हर ख़ुशी...
अपने मायने बदल देती है...
सब कुछ नया नया सा लगता है..
सारी सृष्टी झूमने लगती है इर्द-गिर्द...
इच्छा/आशा/अभिलाषा/महत्वाकांक्षाओं से परे...
शायद...बुद्ध बन जाता हूँ मैं!!
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युगदीप शर्मा (१३ फरवरी, २०१३)