Friday, March 11, 2016

तुम्हें पता है?

तुम्हें पता है?
आज कल रातों में सोते जागते,
फ़ोन के हर विब्रेटेड नोटिफिकेशन पे
मेरा हाथ खुद ही चला जाता है फ़ोन तक,
हर पल एक ही ललक
कि शायद- मैसेज तुम्हारा हो।

कभी कभी
घुप्प अंधेरे में भी
छत पे तुम्हारा चेहरा जगमगा जाता है
और उस पर हलकी सी हंसी का एहसास
महका जाता है मेरी साँसें।

लगता है
कैद कर लूँ उन लम्हात को
अपने सीने में कहीं
जहाँ हर रोज
तन्हाई में भी
उतर के एक बार
जी लिया करूँगा सदियाँ

पता है ?
तुमसे अलग रहने का एहसास
सच में जानलेवा लगता है।
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युगदीप शर्मा (दिनांक ५ नवम्बर २०१५, स्लोवाकिया में)

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