Friday, March 11, 2016

एक खत तेरे नाम...!!!

एक खत तेरे नाम...!!!

अभी  कुछ दिन पहले तक
कितनी अमूर्त  थीं तुम
किन्तु अब साक्षात हो
और कुछ अमूर्त भी
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कुछ पलों में कोई
कितना जान पाता है किसी को
पर हाँ कुछ तो शायद
जान ही लिया था
तभी तो...
और फिर जब पहले पहल
बात हुई थी तुम से
संकोच हर तरफ था..
अभी भी है शायद.
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और अब जब
बात होती है तुमसे.
तब होता है
दूरी का एहसास
जो आंकड़ों में
कुछ हजार किलोमीटर से कम नहीं है

पर फिर भी
कीपैड और सेलुलर नेटवर्क के
डेटा पैकेट्स से छन कर आता
तुम्हारी उँगलियों का स्पर्श
सहज महसूस कर लेता हूँ मैं
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कभी कभी लगता है कि
काश उस स्पर्श को सुन भी पाता

पर फिर सोचता हूँ कि
ठीक ही है शायद

हर नए रिश्ते को,
पकने में समय लगता ही है.

समय देते हैं उसे
परिभाषित होने को
फिर आत्मसात भी कर लेंगे,
हर उस परिभाषा को
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और फिर अगला मोड़
वही होगा जब
रिश्ते- नाते -दुनिया -समाज
- परिभाषाओं के बंधन से परे
हमारा अपना  एक कल होगा
जहाँ individuality ख़त्म कर
हम समग्र हो जाएंगे.
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युगदीप शर्मा (दिनांक - ३ सितम्बर २०१५, प्रातः १०:११ बजे, स्लोवाकिया में)

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