Friday, March 11, 2016

एक और खत तेरे नाम...!!!

चल कुछ ऐसा करते हैं,
हम दोनों दुनिया से बेखबर,
निकल चलते हैं कहीं,
दूर कहीं

जहाँ गम के साये ना हों,
कोई परेशानी कोई झंझट न हो

दूर कहीं

साये तेरी जुल्फों के
ओढ़ कर सो रहूँ मैं

तेरे जिस्म की सौंधी सी महक
समां जाये मुझमें

तेरे होठों का नम एहसास
मेरे होठों पे

और हो
सिर्फ तेरी आँखों के
मदहोश प्याले,
और मैं

बस  इतना ही

चल कुछ ऐसा करते हैं,
हम दोनों दुनिया से बेखबर,
निकल चलते हैं कहीं,
दूर कहीं  ...

दूर कहीं  ...
****
युगदीप शर्मा (दिनांक १६ सितम्बर २०१५, स्लोवाकिया में)

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