Thursday, December 13, 2012

खटमल...(by युगदीप शर्मा)


अक्सर रातों को.. नीदों से जाग पड़ता था .
और पाता था ..बहुत से खटमलों को..
खून चूसते हुए....
बहुत बेचैनी होती थी तब...

अब तो आदत पड़ गयी है उनकी...
उनके बिना नींद ही नहीं आती...
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शुरू में तो खटमल नहीं थे...
या फिर हमें ही कुछ भान न था...
तब बिस्तर भी पूरा
सुकून-ओ- आराम देता था...

फिर धीरे धीरे उन्होंने अपनी पॉश कालोनियां बना लीं...
वहीँ.... जहाँ कि हमारा बिस्तर भी था..
बिस्तर ...
जिस पर.. हम पैदा होते थे...
पैदा करते थे...
और मर जाते थे...

वहीँ आज कल खटमल भी रहने लगे हैं...
अपने किलों में ....
वहां जहाँ तक कि हम इंसानों कि पहुँच नहीं है ...
पर वो बिना रोक टोक कभी भी
पहुँच सके हैं हम तक...

इधर कुछ दिनों से ... आबादी बढ़ा ली है उन्होंने अपनी..
आज कल तो खुले आम...
दिन दहाड़े भी चूसने लगे हैं खून...

और हम भी सोचते हैं कि...बेचारा...
हमारे खून से ही तो जिन्दा है...
थोड़े से खून में ..क्या बिगड़ जाएगा हमारा...
और फिर...
चलने देते हैं यह रक्त-दान का सिलसिला..
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वैसे किसी जरूरत मंद को...
शायद आज तक नहीं दिया...
अपना खून...
क्योंकि वो तो इंसान है...
उसका कमजोर शरीर..अभी भी रखता है
इतनी क्षमता कि..बदल सके
दो टुकड़े रोटी को खून में...

पर बेचारा खटमल तो यह भी नहीं कर सकता...
तभी तो हम उसे दे देते हैं पूरी आजादी...
की वह मनमर्जी तरीकों से
चूस सके हमारा खून...
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आज कल तो सुना है कि...
खटमलों ने भी कुछ तरक्की कर ली है..
बना लिए हैं अपने blood-bank ....
आने वाली पीढ़ियों के लिए...

आज-कल वो खून को
आउट-सोर्स भी करने लगे हैं...
यहाँ तक कि सुना है....
कुछ देशों की economy ...
हमारे ही खून से चल रही है..

वहां की खटमल भी...
हमें दुआ देती है....

वाह ..कितने भले लोग हैं हम......
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कल अगर...
इंसानों की नस्ल ख़तम हो गयी तब....??
नहीं-नहीं...
खटमल ऐसा नहीं होने देंगे...
उन्हें तो जरूरत है...हमारे जैसे
रेंगते हुए इंसानों की....
दे रखा है उन्होंने हमें अभय-दान ....कि..
"जीते रहो...जिन्दा रहो...बस रेंगते रहो"
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युगदीप शर्मा (१७ दिसम्बर, २०१२)