Tuesday, December 8, 2015

इनविजिबल लोग ...!!!

हर रोज ऑफिस आते जाते
कुछ इनविजिबल लोगों से
सामना होता है।

चमचमाते हुई इमारतों पे
रस्सियों से लटकते
कुछ बैग चेक करते
या फिर होउस्कीपिंग ही।


कभी कभी आते जाते रास्तों में
ट्रैफिक में फंसा बछडा भी आ जाता है
गाड़ी के सामने।


कभी कभी दिख जाते हैं
कुछ गंवार लोग भी
बेतरतीब से
लंच टाइम में किसी नजदीकी
अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग से निकलते
या हाइवे को दौड़ कर पार करते।

या कि फिर बालकोनी में बैठे कबूतर ही।

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डर लगता है
गलती से भी कभी गर
आँखों में झाँक लिया उनके

या कभी उन इनविजिबल लोगों से
प्रकाश परावर्तित होने लगा तो?

डर लगता है
मेरी सभ्यता नंगी ना हो जाये उस दिन।
***
युगदीप शर्मा

( दि० २ सितम्बर, रात्रि ९.५३ बजे स्लोवाकिया में)

Sunday, November 1, 2015

भूख और स्वाभिमान...!!!

"वो एक बेचारा भूख से मर गया"
"नहीं नहीं स्वाभिमान से मरा है…
भूख से कोई नहीं मरता"
"आदमी भूख से नहीं मरता ?"
"नहीं... स्वाभिमान से मरता है"
"हाथ फैला सकता था किसी के आगे
पर नहीं ..
मर गया ..
चोरी कर सकता था "
"अगर पकड़ा जाता तो? "
"तो पिटाई से मरता
भूख से नहीं "

"खैर छोड़ो..
आज डिनर का क्या प्रोग्राम है?"
"फोर सीजन्स चलें क्या? वहां San-Qi का खाना अच्छा है !"
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युगदीप शर्मा (दिनांक १५ मार्च २०१४)

Thursday, September 3, 2015

फिर चलता हूँ...!!! (by युगदीप शर्मा)

फिर चलता हूँ...!!

कुछ अपनों से
कुछ सपनों से
थोड़ा बतिया लूँ,
फिर चलता हूँ.
कुछ पल सुस्ता लूँ
फिर चलता हूँ

बहुत दिनों से
दौड़ रहा था
लक्ष्य हीन सा
बेफिकरा सा
सपनों के
टूटे रेशों से
फुरसत के कुछ
पल बुनता हूँ
कुछ पल सुस्ता लूँ
फिर चलता हूँ

जीवन की
आपा धापी में
जाने कितने
पीछे छूटे
जिनके बिन था
जीना मुश्किल
ऐसे कितने नाते टूटे

उन रिश्तों को
उन नातों को
उन लम्हों और
उन यादों को
कण- कण सँजो लूँ
फिर चलता हूँ
कुछ पल सुस्ता लूँ
फिर चलता हूँ
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युगदीप शर्मा (३-४ अगस्त रात्रि १२ बजे २०१४) (फाइनल ड्राफ्ट ३ सितम्बर २०१५ प्रातः ९.३० बजे, स्लोवाकिया में)

Thursday, April 9, 2015

मौसमों के मायने...!!!(by युगदीप शर्मा)

लोग
जिनके लिए बरसात की रातें
रूमानी नहीं होतीं।

लोग
जिनके लिए बरसात का मतलब
टपकती छतों या गीली लकड़ियों से बढ़ कर
कुछ नहीं होता।

लोग
जो काट देते हैं रातें
टांगों के बीच बाल्टी रख
छतों से टपकता सैलाब कैद करने को
और सो जाते हैं बेखबर
बिस्तर के उस एक कोने पर
जो कम गीला है।

लोग
जिनके लिए सर्दियों का मतलब
उन शूलों से है
जो
कम्बलों और गूदड़ियों के
छेदों से निकल
भेदते रहते हैं उनके कंकाल

लोग
जिनका हर दिन,
रात काटने की तैयारियों में
और रातें
दिन की उम्मीद में गुजरती हैं

उनकी सर्दियां गुलाबी नहीं
स्याह होती हैं।

लोग
जो हमारे अन्नदाता हैं
जिनके बनाये लत्ते पहन,
जिनकी बिछायी छतों की छाँव में
हम जिनके भाग्यविधाता होने का
दम्भ भरते हैं।

उन लोगों को
लू के थपेड़े सच में बहुत राहत देते हैं।
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युगदीप शर्मा (दिनाँक- १५/१६ मार्च २०१५ रात्रि १२.११ बजे ) (फाइनल ड्राफ्ट - ८/९ अप्रैल २०१५ रात्रि १:४० बजे)