Tuesday, December 6, 2016

मो सम कौन कुटिल खल कामी।

मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सौं कहा छिपी करुणामय, सबके अन्तर्जामी।
जो तन दियौ ताहि विसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।
भरि भरि द्रोह विषै कौ धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस , विषियिनि संग विसरामी।
श्री हरि-चरन छांड़ि बिमुखनि की निसि-दिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम, अपराधी, सब पतितन मैं नामी।
सूरदास प्रभु ऊधम उधारन सुनिये श्रीपति स्वामी।।
मो सम कौन कुटिल खल कामी।।
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बाबा गाया करते थे।

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