Tuesday, April 22, 2014

पाँव...!!!(By युगदीप शर्मा)

आदमी २ पाँव ही तो हैं

चलते हैं - दौड़ते हैं
सरकते हैं - घिसटते है।
प्यार से झटकते हैं
गुस्से में पटकते हैं

आदमी २ पाँव ही तो हैं

कभी कीचड़ में जाते हैं
कभी गंगा नहाते हैं
कभी सिर छुपाते हैं
कभी आँखें लुभाते हैं.

आदमी २ पाँव ही तो हैं

कुछ गरीब कुछ अमीर
कुछ पूजे भी जाते हैं
कुछ मजबूरी में,
तो कुछ जान के
किये नंगे भी जाते हैं

आदमी २ पाँव ही तो हैं

कुछ दिन रात खटते हैं
२ बखत रोटी जुटाते हैं
कुछ गुंडई दिखाते हैं
बिना मतलब के ही
 लातें बजाते हैं

आदमी २ पाँव ही तो हैं

कुछ में बिवाई - जख्म
तो कुछ कारों में जाते हैं
कुछ पैडल लगाते हैं
तो कुछ मालिश कराते हैं

आदमी २ पाँव ही तो हैं

दिशा हो एक तो मिलकर
कोई आंदोलन कराते हैं
दिशा भटके तो फिर
वो पाँव ही भगदड़ मचाते हैं

आदमी २ पाँव ही तो हैं

कहीं घुसपैठ करते हैं
तो कुछ ग़श्तें लगाते हैं
कुछ आतंक करते हैं
तो कुछ गोली भी खाते हैं

आदमी २ पाँव ही तो हैं

कुछ मंदिर में जाते हैं
तो कुछ मस्जिद में जाते हैं
कुछ बस ताक सकते हैं
सीढ़ी से आगे न जाते हैं

आदमी २ पाँव ही हैं!!!
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युगदीप शर्मा (२१ अप्रैल, २०१४)

Sunday, April 13, 2014

सच्चाई... !!! (by युगदीप शर्मा)

एक दौर था जब ,
हर बंद पलक के साथ,
आँखों में तुम्हारा
चेहरा फिर जाता था

अकेली अँधेरी रातों में
छत से झूलते पंखे पर
तुम्हारी शक्लें ढूँढा करता था

तुम मेरा अस्तित्व बन गयी थीं
तुम्हारे बिना ...
सोच भी नहीं सकता था
जिंदगी गुजार लेने का

पर अब.... इतने बरस बाद..
तुम बस एक
सोच तक सिमट गयी हो
जो कभी कभी
गुजर जाती है दिमाग से
शकल भी धुंधला गयी है अब तो

सिमट गया है तुम्हारा अस्तित्व
कुछ पन्नों में ..
डायरी के वो पन्ने
जो अब ब्लॉग में बदल गए हैं


सोचता हूँ की कभी
अचानक से तुम मिल जाओ
तो क्या पहचान पाउँगा तुम्हें?
शायद नहीं ...!!

और हाँ ..  देखो …
जी भी रहा हूँ
अच्छे से

कुछ भी तो missing नहीं है

तुम्हारा होना... न होना
अब कोई फरक नहीं डालता
और यही सच्चाई है!!
***************
युगदीप शर्मा (१३ अप्रैल-२०१४ रात्रि/प्रातः २:३६)

Wednesday, April 2, 2014

कुछ बेतुकी बात... !!! (by युगदीप शर्मा)


पिछले बहुत सालों से ..वो कस कर ले रहे थे..
जनता के मजे....
और जनता मस्त थी..चूसने में...
लॉलीपॉप..उनके वादों का...
और हम बैठे बैठे.. हिला रहे थे..अपना
उम्मीदों का झुनझुना..
और खा रहे थे ..पकौड़ियाँ ..
जो की उन्होंने निकाल दीं थीं ..
कच्चे तेल में ही..
हजम तो हमको भी नहीं हुई थी...
कुछ बात...
जो की कर गयी थी..
कब्ज.
पर दोष ले लिया था अपने सर..
पकौड़ों ने..
और उन्होंने थमा दिया था हाथ में...
हमराज चूरन
और अब जनता चाटने में मस्त थी...
उसी चूरन को..
और हम दबा रहे थे... रह रह कर ..
अपने जज्बात
कभी सहला रहे थे अपना ..वही..
कब्जियत वाला पेट..
और नहीं छूटने दे रहे थे..धार..
अपने आंसुओं की..
चूस कर फेंक दिया था उन्होंने ...
जनता को 'आम' समझ कर ..
और जनता निचोड़ने में मस्त थी...
अपनी ही गुठलियाँ ...
और अब हम लेटे-लेटे बजा रहे थे ...
बांसुरी चैन की..
.......
क्यूंकि हम... न 'उन' में से थे...न जनता ही थे..
हम तो थे 'बीच वाले'...
और हाँ...यह तो आप जानते ही होगे...
कि बीच वालों पे...कभी 'उनका' नहीं उठता..
हाथ भी ...
क्यूंकि उनका वही लोग सम्हालते हैं...
हरम..
और पालते हैं फल...उनकी हवस का..
"एक और 'उन' जैसा."..!!!
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युगदीप शर्मा (१६ ऑक्टूबर,२०१२)

Saturday, March 8, 2014

लहू का रंग ...!!! (by युगदीप शर्मा)

कभी कभी क्यों लगता है कि..
जिंदगी घिसट रही है..
और  रगों में दौड़ रहा है कुछ..
कुन-कुना पानी..

आज-कल चाय कि दूकान पे-
"छोटू" को आवाज लगाते हुए..
किसी guilt की -
परछाई भी नहीं पड़ती मुझ पे..

ना ही सड़क पे दौड़ते पिल्ले को,
गाड़ियों के बीच से-
हटाने के लिए रुकता हूँ मैं..

आज-कल लोगों से..
अनायास ही 'surname' भी पूछ लेता हूँ
जात-पांत/ ऊँच-नीच/ भेद-भाव..
समाज के अंग लगते हैं अब।

अब ५५ साल के security guard से,
"good morning 'sir'" सुनने में शर्म नहीं आती …
ना ही किसी रिक्शेवाले से ..
5 रुपये के लिए मोलभाव करते बुरा लगता है।

अब गुस्सा नहीं आता…
नेताओं, अफसरों, -
पत्रकारों की बदतमीजियों पे..
ना ही खीझ होती है..

ये सच है..
सब ऐसा ही चलता रहा है
सब ऐसा ही चलता रहेगा
मेरे कुछ उखाड़ लेने से क्या होगा?

तभी तो बदल गया है..
खून का तापमान

कुन-कुना हो गया है अब।

पर हाँ ..कुछ बात है कि..
रंग अभी तक लाल ही है।

ज्यादा दिन नहीं…
सफ़ेद हो जायेगा वो भी !!
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युगदीप शर्मा(२४ फरवरी एवं ८ मार्च -२०१४)

Sometimes ..it feels like....
life is crawling  ..
What's running in the veins ..
is some lukewarm water ..

Nowadays at the Tea Shops
while shouting at a "Chhotu".(minor)..
i don't even feel
a tiny shadow of guilt

Neither,do i stop to,
save the puppy
running on the road ,
among the fast running vehicles..

Now sometimes Unintended..
i ask peoples their 'surnames'
Racism & Caste-ism / discrimination & Partiality / ..
Now seems a part of society .

these days, in hearing "good morning 'sir'"
from a 55 -year-old security guard ,
i don't feel ashamed at all ...
Neither it feels bad to bargain
with a Rickshaw-puller for 5 bucks .

Now i do not get angry
neither irk on the ...
Politicians and bureaucrats's or -
Journalist's insolence..
 ..

It's true ..
in the same way, it always happened
the same way, it will happen
What I can do....?

that's why temperature
of my blood has changed

it's lukewarm now

however,
The color is still red .

Not for long ...
It will become white too !