जिंदगी की किसी सुनसान सड़क पे,
बस तेरा हाथ पकड़ के , अपने हाथों में,
एक अंतहीन सफ़र पे
चलते चला जाना चाहता हूँ.
या किसी पार्क में किसी पेड़ के नीचे,
कोने की किसी बेंच पे बैठी हुई तुम,
तुम्हारी गोद में रख के सिर
सो जाना चाहता हूँ.
चाहता हूँ कि किसी गम में,
डूबते उतरते हुए भी
तुम्हारा हाथ मेरे हाथों में हो...
या कि फिर,किसी खुशनुमा माहौल में भी,
तुम्हारे साथ साथ जहाँ की,
खुशियों का जश्न मनाना चाहता हूँ
दूर किसी वादी में, या किसी पहाड़ की चोटी पे,
पीली, चटख, सर्द धूप में,
सुकून के कुछ लम्हे ,
तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ.
या किसी, सागर के किनारे,
साहिलों से टकराती हुई
लहरों कि तरह,
टूटती -बिखरती - खिलखिलाती सी तुम्हारी,
हँसीं को, सीने से लगाना चाहता हूँ.
चाहता हूँ कि, सारे रात-दिन
सुबह-शाम, सारे, थम जाएँ वहीँ,
और बस मेरा तुम्हारा साथ हो,
या कि फिर, गुजार जाएँ सभी,
दिन-महीने-साल, जो गुजरना चाहें,
और मैं तुम्हारे सीने पे रख के सिर,
सो जाऊं, एक अनवरत-चिर-खुशनुमा नींद में,
हमेशा हमेशा के लिए.
या अगर , मुमकिन ना हो, इतना सब कुछ,
तो चाहता हु यही,
कि बस इक पल, सुन सकूँ अपना नाम,
तुम्हारे होठों पर, प्यार से,
और फिर,इक उसी पल के सहारे,
सारी जिन्दगी गुजार देना चाहता हूँ.
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युगदीप शर्मा (२५ फरवरी-२०१० और ७ मार्च-२०१०)
Beautifully written
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