तेरी आँखों पे ग़ज़लें हज़ारों हुईं,
तेरी नज़रों ने कातिल होने
के इलज़ाम लिये।
तेरी पलकों पे ओस भी कई दफा ठहरी,
तेरे लबों को बहुतों ने जाम कहा।
तेरे रुख में बहुतों को चाँद नज़र आया
तेरी जुल्फों से कई बार घटा बरस गई
तेरे पोरों को किसी ने फूल कहा
तो कुछ ने हथेली पर उठाए पाँव,
कि कहीं जमीं से मैले न हों।
तेरी अँगड़ाइयाँ जंगों का सबब बनी,
तेरो अदाओं से हज़ारों हलकान हुए।
तुम क्या थी, क्या हो, और क्या होगी।
यही तो माया है।
हह... भूल जाओ।
*********
युगदीप शर्मा ( दिनांक ११ अक्टूबर, २०१९ , प्रातः ११ बजे , पुणे में )
तेरी नज़रों ने कातिल होने
के इलज़ाम लिये।
तेरी पलकों पे ओस भी कई दफा ठहरी,
तेरे लबों को बहुतों ने जाम कहा।
तेरे रुख में बहुतों को चाँद नज़र आया
तेरी जुल्फों से कई बार घटा बरस गई
तेरे पोरों को किसी ने फूल कहा
तो कुछ ने हथेली पर उठाए पाँव,
कि कहीं जमीं से मैले न हों।
तेरी अँगड़ाइयाँ जंगों का सबब बनी,
तेरो अदाओं से हज़ारों हलकान हुए।
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जिसने जैसा चाहा,
वैसा रूप देखा।
किसी ने पूजा, किसी ने चाहा, किसी ने भोगा,
किसी ने मूरत , किसी ने वस्तु,
तो किसी ने तुमको बाजार बना दिया
तो किसी ने तुमको बाजार बना दिया
कभी जंग, कभी कारण, तो कभी हथियार बनी ,
और तुम, खुद भी भूल गयी कि
और तुम, खुद भी भूल गयी कि
तुम क्या थी, क्या हो, और क्या होगी।
यही तो माया है।
महा ठगिनी।
ये सब शायरों के ख्वाब थे,
और कुछ तरीके,
कि तुम भूल जाओ अस्तित्व,
और जी लो , दूसरों ले मुताबिक।
ये सब शायरों के ख्वाब थे,
और कुछ तरीके,
कि तुम भूल जाओ अस्तित्व,
और जी लो , दूसरों ले मुताबिक।
और हाँ,
बराबरी?
बराबरी?
हह... भूल जाओ।
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युगदीप शर्मा ( दिनांक ११ अक्टूबर, २०१९ , प्रातः ११ बजे , पुणे में )