कुछ झूठे जज्बात लिखें
या फिर से वो ही बात लिखें।
सदियों लंबी रात लिखें या
जगना बरसों बाद लिखें।
कलमों की चिंगारी से
कागज में लगती आग लिखें
आ चल फिर से कुछ आज लिखें।
गूंगों की आवाज लिखें,
या पंख कटी परवाज लिखें ।
इन शहरी खंडहरों से,
उड़ती इंसानी राख लिखें।
ऊंचे महलों को थर्रा दे,
वह अश्कों के सैलाब लिखें।
आ चल फिर से कुछ आज लिखें।
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युगदीप शर्मा ( दिनांक ८ अक्टूबर, २०१९ , रात्रि ११ बजे , पुणे में )
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